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कुछ अधूरे ख्वाब

ये जो आंखो में सपने हैं तुम्हारे, कैसे बताओगे क्यों पूरे नही हुए? क्यों आखिर आज हार कर भी इक सुकून सा दरमियां हैं? शायद इसलिए, कि ये जानते हैं कि सबसे ज्यादा इन्हें समेट कर मैं...