कुछ अधूरे ख्वाब
ये जो आंखो में सपने हैं तुम्हारे,
कैसे बताओगे क्यों पूरे नही हुए?
क्यों आखिर आज हार कर भी इक सुकून सा दरमियां हैं?
शायद इसलिए, कि ये जानते हैं कि सबसे ज्यादा इन्हें समेट कर मैंने ही रखा था,
जिस धागे की माला में इन्हे पिरोया था, वो माला आज भी महफूज़ हैं,
हर मोड पर मैं बिखरता चला गया, मगर जानते हो उस माला को मैंने कभी बिखरने नहीं दिया।
मेरी थरथराती हुईं सांसे मुझसे बार बार सवाल करती है,
क्यों देखे थे ऐसे ख्वाब जिन्हें इतना समेट कर रखा,
फिर भी समंदर किनारे की मिट्टी की तरह आहिस्ता - आहिस्ता हाथ से फिसलते चले गये?
ये इक ऐसी कहानी की तरह आये जिंदगी में,
कि तन्हाई के साथ साथ एक दास्तां भी पिछे छोड गयें।
ग़र अब कोई हमसे पूछे कि क्या हासिल किया 24 साल की उम्र में हमनें?
क्या उन्हे सच बता दूं मैं?
बता दूं उन्हें कि ख्वाब बेहद खुबसूरत देखें,
पर मुकम्मल हो ना पायें उस अधूरें इश्क की तरह,
जो पूरा ना भी हो तब भी हसीन सा लगता हैं,
रूलाता बहुत हैं मगर,
सुकून, सुकून उस से भी कहीं ज्यादा देता हैं।
Adorable
ReplyDeleteBeautiful 👌
ReplyDeleteSuperb.... Motivational poem ....
ReplyDeleteEk shayari apke liye
Ye aapke dil ki gehrai se nikali awaz hai jisne sabke dilon ko chu liya.
watan se pyar karne wale to jhuke hi aapne to watanparast ke dilo ko bhi chu liya......